[avatar user=”Seema Shukla” size=”98″ align=”center”]Seema Shukla[/avatar]
कभी यूँ ही चल पड़ने को जी चाहता है,
कि कहांँ जाना है?
इस बात का ख्याल न हो।
क्या नहीं किया,इसकी कोई फि़क्र न हो।
किसके साथ जाना है?ऐसा कोई अरमान न हो।
दिल में कहीं कोई सोच न हो।
जहाँ जाओ वहाँँ, किसी से कोई पहचान न हो।
जिस ‘खुद’ को जाने कहांँ छोड़ आए हम,
उस खुदी के साथ कुछ पल ..
जीने को जी चाहता है।
कभी-कभी बस सब कुछ छोड़कर ,
चल पड़ने को जी चाहता है।
किसी कंदरा में, किसी तलहटी में,
किसी मरुस्थल में.. कहीं भी….
जहाँ मैं खुद के साथ रहूँ..
पुराने गिले शिकवों छोड़ सकूँ..
माजी़ को नज़रअंदाज कर सकूँ…
जहाँँ मुस्तक़बिल से भी बेपरवाह हो सकूँ..
एक ऐसे सफ़र पर जाने को जी चाहता है।
कभी यूँ ही चल पड़ने को जी चाहता है,।