समर्पण

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माँ-माँ कहते दोनों बच्चे अंजू के आँचल से लिपट गए। दोनों सिर से पांव तक धूल में सने थे आखिर इतनी धमाचौकड़ी जो मचा रखी थी पार्क में। अंजू उन्हें अपनी गोद में भरकर फूली न समा रही थी। दो साल की गोल-मटोल मासूम-सी खुशी और उसका बड़ा भाई राहुल, दोनों अपनी माँ को दिनभर नचाते रहते थे। ममता का यह मनोरम रूप देख शीला भाभी से रहा न गया।अंजू की पीठ थपथपाकर बोलीं-” अरे अंजू, कैसे संभालती है तू इतना सब?कहने को तो राहुल बड़ा है खुशी से पर शरारतों में उससे कहीं आगे।तेरी आँखों के तारे पूरा घर सिर पर उठाए रहते हैं , तुझे चैन न मिलता होगा।” ” हाँ भाभी, आपने सही कहा। राहुल पूरे दिन खुशी को चिढ़ाता, खिजाता है , बड़े भाई की तरह पूरा अधिकार जताता है पर उसके जरा से रूठ जाने पर अपने सारे खिलौने उसके हाथों में थमा चुपचाप बैठ जाता है मानो खुशी से बढ़कर कोई खुशी न हो इसके लिए”- अंजू ने एक श्वास में कहा। “अंजू, तू बड़ी भाग्यशाली है। नौनिहालों की मस्ती और शेखर बाबू का प्यार। किसी की नजर न लगे तेरी खुशियों को” शीला भाभी अपनेपन में सब कहती चली गईं।

अंजू कुछ सहम गई।सहसा खुशी को कलेजे से लगा राहुल का हाथ थामकर अंजू घर की ओर चल दी। शीला कुछ समझ न पाई पर कोमल सब समझ चुकी थी। कोमल शीला भाभी के गले लगकर फफक पड़ी-” भाभी सब खत्म हो गया, भइया हमें छोड़कर चले गए…। अंजू भाभी का यह दुःख देखा नहीं जाता, कैसे बिता पाएंगी एक विधवा का एकाकी विरक्त जीवन…!” शीला के पैरों से जमी़ खिसक गई। कब?कहाँ?कैसे? यहीं प्रश्न थे जिह्वा पर।

‘एक हादसे ने सब छीन लिया’- कोमल दबी आवाज में बोली। कोमल और शीला दोनों अंजू को एकटक निहारे जा रहे थे अनंत मनोभावों संग…। अंजू दूर खड़ी सब सुन रही थी पर उसकी आँख में एक आंसू न था क्योंकि उसके पति का प्रेम दो रुपों में बंटकर प्रतिपल उसके आँचल से बंधा था उसे हँसाने-गुदगुदाने के लिए…..।

  • मोहिनी तिवारी

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