मां का आचल था
मेलों से भरा था
सीने से लगा के रखा था
जिससे आती है महक
मेरे मां की प्यार की दुलार की
उस आंचल को पकड़कर
मेने चलना है सीखा
घुटनों में रेद्धकर
मां के आंचल को भेदकर
मेने सीखा है चलना
मां का एक आंचल था
जिसे पकड़ने का हमेशा
एक बहाना था
मां के आंचल में
महक थी मेरे माठी की
जिसकी महक से
याद आती थी मेरे बचपन की
मां के आंचल ने है मुझे बचाया
धूप से छांव से
शैतानी भरी निगाहों से
अंधेरे के इस गांव से
आंचल ने है मुझे संवारा
मां के आंचल से
महक आती है अपनों की
जो इस दुनिया में
मिले न अपनों से
मां का आंचल था
जो लूं और पसीने की
गंध से भरा था
उस आंचल के छांव में
दुनिया के दिये धावों से
मुझे है संवारा
मां का आंचल था
जो खुशियों से भरा था।
=>मंजु नायर
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