
ओ मेरे श्रेष्ठ इतिहास ……
मुझसे मानव की कुंद बुद्धि को क्षमा कर…
क्योंकि मैं हूँ ..
एक निःसार मानव…..
उस बुद्ध ,महावीर,
ईसा..राम सबको ही..
नतमस्तक हो प्रणाम करती हूँ पर……
मेरे ह्रदय में नहीं श्रद्धा, अब तनिक……
ये….मैं हूँ एक निःसार मानव……
क्या करूँ.., कि इस वर्तमान में….,
कोई नक्षत्र नहीं दीखता अतीत का…..
भविष्य के नक्षत्रों कि कांति तो….
अभी से धुंँधला गई है………..
ये अपमान है पूर्वजों का ……….
शायद………………….!
पर हमें है ..
आवश्यकता भविष्य की,
…न कि विगत की………..!
तो ओ…! मेरे श्रेष्ठ इतिहास…
तुम्हें शत-शत प्रणाम………!
तुम विसर्जित क्यों नहीं हो जाते ……..?
हमारे भविष्य की स्थापना के लिए………….!
- सीमा शुक्ला