महफ़ूज़ रखना इबादतो के घर
पुख़्ता हो रहे हैं नफरतों के घर
दर्द की दीवारें ये दफ्तरों का दौर
बहुत तन्हा हो गए हैं मोहब्बतों के घर
मुझे मालूम है तू भी ‘खुदा’ हो जाएगा.
मगर बसाए रखूँगा मैं रहमतो के घर
मिरी आंख में हैं जले गांव के मंजर.
इस गांव में हैं कई शिकायतों के घर
वो शोहरत का शहर है उसे भूल जाओ
फकत तुम रह गए ‘मोसम’ तोहमतो के घर.
=> मौसम राजपूत