* प्रवासी *

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पुरवाई को चीर हौले से विहंसती
कोहरे की कंबल ओढ़े
अरुणा तन पर,
दिग सखी, विहंग व्रन्द संग,
लख, द्युति नवयौवना रूप अलसाई,
नवगीत नवीन कुसुम दल स्वर माला,
बुनती क्षितिज को सुनाती सहर्ष,
अंजुरी में स्वर्ण विभा सहेजे सहज
सजल नयन अपरिचित रूप उत्सुक से,
खेतों को, उपवन को जगाती
जा रही है
दूर देश,
कन्या गडरिए की l.

~ मौसम ~

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