संकट का ये काल है, मौत का ये साल है।
एक तरफ भुखमरी का संकट,
दूजा कोरोना का फैला जाल है।
लौट आया है रक्तबीज सा वो दानव अपराधी,
अंत करें इस काल का कैसे
करे हरकोई आपाधापी।
धन दौलत तो एक तरफ अब रोटी के भी लाले हैं,
शेष बचा जीवन ये भगवन अब तेरे ही हवाले है।
कितने निर्बल कितने बेबस,
निरपराध है मर रहे।
जान हथेली रख वैध,
अपना कार्य है कर रहे।
घर के भीतर रहेंगे कब तक,
बच्चों का पेट भी है भरना।
मर गए कोरोना से लाखों,
भूखे शेष चले जाएंगे वरना।
ये कैसी महामारी आई,
इसकी न कोई ढाल है।
इस कलयुग में देखो,
मानव जीवन का क्या हाल है।।
- श्री मती रजनी