दर्द, दर्द किसी नारी का आभूषण या अधिकार नहीं
जो बंधकर भींजे आँचल से ,
नयनो में बसी पुतली-सा प्रतिपल टिमटिमाते रहे।
दर्द ‘एक भाव’ नैसर्गिक, सहज,
मार्मिक
छलनी कर देता है एक पुरुष का ह्रदय
उस वक्त,
जब उसकी पत्नी सिक्कों के तराजू में तौलकर हैसियत,
दाम लगाती है उसके समर्पण औ’ अपनेपन का।
उस वक्त,
जब उसकी पत्नी छिप-छिपाकर नजरों से
झुक जाती है गैर के दर पर प्रेम का दीप जलाने।
दर्द का एक दौर यह भी है…..!
- मोहिनी तिवारी