बीमारी की बात

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संसार में कौन बीमार रहना चाहता है? संभवत: कोई नहीं चाहता वह कभी भी बीमार हो। किंतु आश्चर्य की बात है कि समाज के 100 में से 98 व्यक्ति प्रतिदिन बीमार रहते हैं। जिनके बलबूते पर बड़ी-बड़ी दवा कम्पनियाँ और चिकित्सकों की टोलियां सदाबहार रहती हैं। उनकी बीमारी स्वयं बीमारी बन जाती है। लाइलाज हो जाती है। उनका पीछा जीवन पर्यंत नहीं छोड़ती है।

ऐसे व्यक्ति प्रकृति के निरीहतम प्राणी बन जाते हैं। स्व-सहानुभूति के आकांक्षी भी हो जाते हैं। उनके कहीं पहुंचने से पहले उनकी बीमारी वहां दस्तक दे चुकी होती है। लोग उनकी बीमारी को लेकर व्यग्र गंभीर और चिंताकुल हो जाते हैं।
अति संवेदनशील व्यक्तियों के लिए ऐसे लोग दहशत बन जाते हैं। उनके पास भी फटकना नहीं चाहते। बीमारी से ग्रसित बीमार वाले व्यक्ति कभी स्वस्थ नहीं हो पाते। लोग उनके मुंह से यह सुनने को तरस जाते हैं कि वह अब ठीक हैं। क्योंकि वह ठीक नहीं होते। जुखाम हटा तो बुखार चढ़ जाएगा। बुखार गया तो पेट दर्द या सिर दर्द आ घेरेगा। सब कुछ ठीक रहा तो वह उदर अपच और अफारा से पीड़ित हो उठते हैं। भाग्य में सभी शारीरिक व्याधियाँ शांत रहीं तो उनका मन अशांत हो जाता है। किसी की भी कहीं छोटी सी बात उन्हें तनाव युक्त कर देती है। बीमार बना देती है। उन्हें सोचने और कुढ़ने का एक नया अवसर प्रदान कर देती है। ऐसा ना होने पर उनके जीवन में एक वैक्यूम या खालीपन आ जाता है और वह बीमारी से बड़ी बीमारी में फस सकते हैं। बीमारी सहृदया होती है।

वह बीमार को अकेला नहीं छोड़ती। खुद नहीं तो अपनी सरीखी व दूसरी चिंता जननी को उसके संपर्क में ला देती है ताकि वह खालीपन के एहसास से उसका (बीमारी या) साथ छोड़ आनंद वाटिका में ना भटक जायँ। वैसे बीमारी और व्यक्ति की सोच में गहरा रिश्ता है। कुछ लोगों को बड़ी से बड़ी बीमारी, बीमार नहीं करती। लोग समझ ही नहीं पाते कि उन्हें कोई बीमारी भी है। जबकि कुछ लोगों के लिए दो छींकों का आना किसी गंभीर बीमारी का कारक बन जाता है। उनकी छींकें उन्हें दुनिया का सर्वाधिक बीमार व्यक्ति घोषित कर देती हैं। ऐसे लोग सहानुभूति से अधिक मनोरंजन के पात्र बन जाते हैं। उनके प्रति प्रदर्शित की जाने वाली सहानुभूति में भी हास्य का पुट शामिल होता है। इस हास्य स्थिति से बचने के दो ही रास्ते हैं- प्रथम यह कि अपनी बीमारी का बखान कम से कम किया जाए। दूसरे बीमारी के चलते सकारात्मक विचारों से परहेज ना किया जाए।नकारात्मक सोच बीमारी को कई गुना बढ़ा देती है।

यह सकारात्मक सोच का ही परिणाम था कि विश्व के शक्तिशाली राजनेता को पैरों का लकवा हताश नहीं कर सका।नकारात्मक सोच बीमारी को ही बीमार बना देती है उससे व्यक्ति मुक्ति नहीं पा सकता। अपने मन की मस्ती के नाव में सकारात्मकता की पतवार के सहारे बढ़ते रहो बीमारी से दूरी स्वत: बढ़ जाएगी।

अहं

अहं देवत्व की राह में सबसे बड़ी बाधा है, जब तक ‘मैं’ का भाव मन में रहता है व्यक्ति स्वयं से, दूसरों से और यहाँ तक कि ईश्वर से भी दूर रहता है। उसकी आंखों पर अहं का चश्मा उसे एक सीमित दायरे तक की वस्तुओं को देखने में सहायक होता है। वह इस दायरे से अधिक ना तो कुछ देख पाता है और ना ही कुछ समझ पाता है। अहं भाव व्यक्ति को नश्वरता और तुक्षता प्रदान करता है।
ता बा खुदम अज अदम कम कम ।
चूँ बा तो शुदम हमा जहानम।। तब तक मैं ‘अहं’ हूँ, तब तक मैं नश्वर हूँ और तुच्छ हूँ। परंतु जब मैं तू हो जाऊंगा तब सारा संसार हो जाऊंगा।

अहं भाव के मध्य ईश्वर भी प्राप्त नहीं होता। ईश्वर को प्राप्त करने के लिए अहम भाव का त्यागना आवश्यक है। बिना अहं भाव त्यागे जितने भी तीर्थ स्थल क्यों ना घूम लिया जायँ मन की कलुषता नहीं मिटती। ईश्वर से मिलन का रास्ता सहज नहीं होता।

मनुष्य जितनी देर अहं से जुड़ा रहता है उतनी देर दोष उसे घेरे रहते हैं। वह दोष युक्त रहता है। वह देवत्व की ओर अग्रसर नहीं होता है। जिस पर उसका अहं-बोध समाप्त हो जाता है वह देवत्व के समीप आ जाता है।
दादू दयाल के शब्दों में-

जहाँ राम तहँ मैं नहीं, मैं तहँ नाहीं राम।
दादू महल बारीक है, द्वै को नहीं ठाम।।
यह तो यह ‘मैं’ या ‘अहं’ नहीं का पर्दा सांसारिक जनों को भी व्यक्ति से दूर रखता है। व्यक्ति ना तो दूसरों को समझ पाता है ना उसके साथ हेल-मेल कर पाता है।

“आप ही आप यहाँ, तालीबो (चाहने वाला) मतलब (जिसको चाहा जाए) है कौन
मैं जो आशिक प्रेमी हूं कहा था मुझे मालूम ना था।
वजह मालूम पड़ी, तुझसे ना मिलने की सनम (प्रिय)
मैं ही खुद पर्दा बना था मुझे मालूम ना था।।

अहं भाव रखने वाले को ईश्वर प्राप्त नहीं होता। जिस दिन ईश्वर प्राप्त होता है उसी दिन अहं भाव मन में नहीं रहता। कहते हैं कि अहं को त्यागने से ही अहं का विस्तार होता है। ऐसा विस्तार जिसमें समस्त सृष्टि समाहित हो जाती है। अहं के चलते मन में हताशा का भाव उत्पन्न होता है। व्यक्ति तनाव युक्त रहता है। उसकी बुद्धि का क्रियाकलाप बाधित रहता है।

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