मेरी ज़िन्दगी, कितनी बेरंग होती।
अगर माँ न होती, अगर माँ न होती।।
माँ के ही कारण, मैं दुनिया में आई।
माँ ने मुझे मेरी, बोली सिखाई।
माँ ने ही धरती पे, जन्नत दिखाई।
मैं आशाभरे स्वप्न, कैसे पिरोती?
अगर माँ न होती, अगर माँ न होती।
कभी था अँधेरा, कभी दुख घनेरा।
कभी पथ न सूझा, घटाओं ने घेरा।
मगर मुस्कुराता रहा, माँ का चेहरा।
मुसीबत के पल में, कहाँ जाके रोती?
अगर माँ न होती, अगर माँ न होती।।
है माँ से ही सीखा, कठिन व्रत उठाना।
प्रबल आँधियों में भी, दीपक जलाना।
मेरी माँ है मेरी, खुशी का खज़ाना।
मैं अपनी नियति की, ऋणी कैसे होती?
अगर माँ न होती, अगर माँ न होती।।
~संत कुमार दीक्षित~