डॉ. सुजाता वर्मा – परिचय
हिन्दी की विदुषी महिला डा0 सुजाता वर्मा का जन्म कानपुर महानगर के लाजपत नगर मोहल्ले में एक प्रतिष्ठित पंजाबी तथा एक प्रमुख व्यवसायी परिवार में 22 सितम्बर 1960 का को हुआ। आपके पिता स्वर्गीय श्री मंगतराम सचदेवा एक सफल व्यवसायी थे , तथा आपकी माता श्रीमती कृष्णावन्ती सचदेवा एक कुशल व प्रतिभा सम्पन्न गृहणी थीं जिनका प्रभाव बाल्यावस्था से ही डा0 सुजाता पर पड़ा।
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कोई नाम न दो
"जो सच है वह यह कि महज संसर्गों और संपर्कों का प्रतिरूप है जीवन ! कभी दिखता नहीं। कभी मिलता नहीं। मिलता है, तो निभता नहीं। सामाजिक परिवेश में तो एक अजूबा बनकर रह जाता है, यह जीवन। लोग जो स्वयंभू हैं, झुंड में समाज है, बौखलाए हैं। जो कहते हैं वह करते नहीं। जो करते हैं उसे कहते नहीं। मानो कथनी और करनी एक नदी के दो ऐसे किनारे हों जिन पर एक साथ विश्राम कर पाना सम्भव ही न हो।"
कहते हैं, प्रेम करो, घृणा से घृणा करो। प्रेम पूजा है, इबादत है, नसीहत है, जीवन है और न जाने क्या-क्या है? मगर जब कभी कहीं निश्चल प्रेम का आगाज होता है, तो वही जो लोग, झुंड में भागती हुई भेड़ों के समान खलबली मचा देते हैं, भुनकर खाक हो जाते हैं। प्रतिशोध की अग्नि में हाथ सेंकने लगती है। प्रवंचना में मानवता को होम कर देते हैं।
"ऐसे ही हैं, अशक्त लोग। जर्जर सिद्धांतों, परम्पराओं और खानदानी उसूलों को साक्षी बनाकर सस्नेह, प्रेम की होली जला खुश होते हैं जहरीले लोग। फिर क्यों न भला हम उन्हें छोड़ कहीं दूर, बहुत दूर चलें। हमेशा और हमेशा के लिए चलें । जहाँ दरख्तों के साए भी छाँह न दे सकें। वहाँ कौन ठहरे ?"
"चलो, चलें, एक गुलिस्ताँ बना डालें। गुलशन बना डालें। इंसानियत की महराब, इंसान से दूर, बहुत दूर बना डालें। मनुष्यत्व पैदा कर डालें। पीछे मुड़कर न देखें। इसी में सबका हित है।"
अविनाश!
इसी उपन्यास से........
अनाम तकाज़े
"साहित्य सागर के दो छोर हैं -गद्य और पद्य। एक भाव प्रधान । दूसरा भावना प्रधान।भाव प्रधान रचनाओं में संपादन की असीम संभावनाएं होती हैं। भाव प्रधान रचनाओं में संपादन की सीमित गुंजाइश होती है।
कारण ,भावनाएं रचनाकार के हृदय तल से निकली अनियंत्रित नद लहरों समान बह निकलती हैं। भागीरथ प्रयासों से उन भावनाओं के कलकल नाद को सहेज, रचनाकार इन्हें या इनके संदेशों को शब्दों में गूथता है।
ऐसे में उसके मनोभाव को छू पाना , उसके अंतर्नाद को सुनकर उसकी दृष्टि से उन्हें समझ पाना और फिर उन पर संपादकीय कलम चलाना, दुरूह कार्य है।विशुद्ध संपादन रचनाकार की भावनाओं से न्याय नहीं कर सकता।
बेहतर है भाव सरिता लहरों के अप्रतिम सौंदर्य का आनंद उनके मौलिक मूल रूप में ही उठाया जाए।इसी विचार को इस पुस्तक में संकलित रचनाओं के संबंध में यहां पुष्ट करने का प्रयास रहा है।
प्रस्तुत पुस्तक पद्यात्मक रचनाओं का संकलन है। इसमें उन सभी रचनाकारों के प्रयासों का समावेश है, जो साहित्य के चुनौतीपूर्ण कठोर प्रस्तर खंडों पर अपनी रचनात्मकता की छाप छोड़ने को उद्धत है। कटिबद्ध है।
ऐसे में पद्य रचनाओं में स्थापित मानदंडों से फिसलाहट का अंदेशा तो बना ही रहेगा।
इस अंदेशे या हक़ीक़त को नजरंदाज कर यदि पाठकगण नवोदित रचनाकारों के प्रयासों को उदारतापूर्वक आत्मसात कर सके,तो निश्चितरूप से यह हौसला अफजाई बेमिसाल होगी। साथ ही नव रचनाकारों को वृहत्तर समाज के समक्ष एक अपना प्लेटफार्म देने की दिशा में डॉक्टर सुजाता वर्मा स्मृति समिति के प्रयासों को भी नई स्फूर्ति मिलेगी, जिसके तत्वाधान में इस संकलन योजना को रचनाकारों तथा विकास प्रकाशन के सहयोग से प्रारंभ किया गया है।
आशा है सुधि पाठकों का वरद हस्त रचनाकारों को प्रोत्साहित करने में सदा उनका हमसफर रहेगा।
फेल न होना ….
फेल न होना… भाग – 10
एक कबीर और ….
दुर्भाग्य
शग़ल
जिद्दीपन
गूँज
सन्देश / सूचना
आमंत्रण
समिति के आठवें समारोह 2025 में कहानी संग्रह का प्रकाशन प्रस्तावित है | 3000 शब्दों में इच्छुक व्यक्ति, 15फरवरी 2025 तक रचनाकार एक रचना टाइप या हस्तलिखित निम्न पते पर भेजें |
मंत्री, डॉ. सुजाता वर्मा स्मृति समिति , 305 आनंद पैलेस, 10/499 खलासी लाइन, कानपुर – 208001
संपर्क सूत्र :
जी पी वर्मा – 9935202966
पंकज बाजपेई – 9450057852